
तू अपनी आशियाना छोड़
उड़ पड़ी और बस्तीमे,
मन भरा तो लौट आई
पर तू इतनी मूर्ख भला कैसी??
लो मनमे पत्थर रख
माफ किया तेरी ख्वाबोंकी गुस्ताखीकॊ,
पर एक दिन तू लौट आई
और सब कुछ तुझे वैसा ही मिले जैसे तू गई थी छोड़
तेरी इस सोच से कैसे दंग न रहू ए पंछी में भला?
© Selina Subba
I value your wonderful read. Please follow
सेली जी आप बहुत अच्छा लिखते है। इंडिया के लेखकों के लिए एक सुनहरा अवसर है। एक प्रतियोगिता चल रही है, जिसमें ढ़ेरों इनाम भी है। क्या आप इसमें भाग लेना चाहेंगे? अगर आप उत्सुक हो तो आप मुझे बताए तो मैं आपको सारी details भेजूंगी।
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जरुर । 🙂
मे आभारी हूँ आपने मुझे इस काबिल सम्झी।
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Ji aap mujhe apna mail id send kriye. Main apko waha details bhejti hun
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seliwrites@gmail.com
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I have mailed you. Please check it😊
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Ok.
Thank u
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